November 26, 2017 at 7:31 pm (art, Article, life, Mohitness, observation, Uncategorized)
Tags: Artwork, Message, Mohit-Trendster, social, writeup
“…और मैं अनूप जलोटा का सहपाठी भी था।”
*कलाकार श्री सत्यपाल सोनकर
पिछले शादी के सीज़न से ये आदत बनायी है कि पैसों के लिफाफे के साथ छोटी पेंटिंग उपहार में देता हूँ। पेंटिंग से मेरा मतलब फ्रेम हुआ प्रिंट पोस्टर या तस्वीर नहीं बल्कि हाथ से बनी कलाकृति है। पैसे अधिक खर्च होते हैं पर अच्छा लगता है कि किसी कलाकार को कुछ लाभ तो मिला। एक काम से घुमते हुए शहर की तंग गलियों में पहुँचा खरीदना कुछ था पर बिना बोर्ड की एक दुकान ने मेरा ध्यान खींचा जिसके अंदर कुछ कलाकृतियाँ और फ्रेम रखे हुए थे। सोचा पेंटिंग देख लेता हूँ। कुछ खरीदने से पहले एक बार ये ज़रूर देखता हूँ कि अभी जेब में कितने पैसे हैं या एटीएम कार्ड रखा है या नहीं। एक कॉन्फिडेंस सा रहता है कि चीज़ें कवर में हैं। किस्मत से जिस काम के लिए गया था उसको हटाकर जेब में 200-300 रुपये बचते और कार्ड भी नहीं था। अब पता नहीं इस तरफ कब आना हो। इस सोच में दुकान के बाहर जेब टटोल रहा था कि अंदर से एक बुज़ुर्ग आदमी ने मुझे बुलाया।
अंदर प्रिंट पोस्टर, फ्रेम किये हुए कंप्यूटर प्रिंट रखे थे और उनके बीच पारम्परिक कलाकृतियाँ रखी हुई थीं। पोस्टर, प्रिंट चमक रहे थे वहीं हाथ की बनी पेंटिंग्स इधर-उधर एक के ऊपर एक धूमिल पड़ी थी जैसे वक़्त की मार से परेशान होकर कह रही हों कि ‘देखो हम कितनी बदसूरत हो गयी हैं, अब हमें फ़ेंक दो या किसी कोने में छुपा कर रख दो…ऐसे नुमाइश पर मत लगाओ।’ मैंने उन्हें कहा की मुझे एक पेंटिंग चाहिए।
“मेरी ये पेंटिंग्स तो धुंधली लगती हैं बेटा! आप प्रिंट, पोस्टर ले जाओ।”
सुनने में लग रहा होगा कि इस वृद्ध कलाकार को अपनी कला पर विश्वास नहीं जो प्रिंट को कलाकृति के ऊपर तोल रहा है। जी नहीं! अगर उसे अपनी कला पर भरोसा ना होता तो वो कबका कला को छोड़ चुका। उसे कला पर विश्वास है पर शायद दुनिया पर नहीं। मैंने उन्हें अपनी मंशा समझायी और धीरे-धीरे अपने कामों में लगे उस व्यक्ति का पूरा ध्यान मुझपर आ गया। आँखों में चमक के साथ उन्होंने 2-3 पेंटिंग्स निकाली।
“बारिश, धूप में बाकी के रंग मंद पड़ गये हैं। अभी ये ही कुछ ठीक बची हैं जो किसी को तोहफे में दे सकते हैं।”
मेरे पास समय था और उसका सदुपयोग इस से बेहतर क्या होता कि मैं इस कलाकार, सत्यपाल सोनकर की कहानी सुन लेता।
1951 में चतुर्थ श्रेणी रेलवे कर्मचारी के यहाँ जन्म हुआ। सात बहनों के बाद हुए भाई और इनके बाद एक बहन, एक भाई और हुए। तब लोगो के इतने ही बच्चे हुआ करते थे। कला, रंग, संगीत में रुझान बचपन से था पर आस-पास कोई माहौल ही नहीं था। वो समय ऐसा था कि गुज़र-बसर करना ही एक हुनर था। कान्यकुब्ज कॉलेज (के.के.सी.) लखनऊ में कक्षा 6 में संगीत का कोर्स मिला जिसमें इनके सहपाठी थे मशहूर भजन, ग़ज़ल गायक श्री अनूप जलोटा। स्कूली और जिला स्तरीय आयोजनों, प्रतियोगिताओं में कभी अनूप आगे रहते तो कभी सत्यपाल। एक समय था जब शिक्षक कहते कि ये दोनों एक दिन बड़ा नाम करेंगे। उनकी कही आधी बात सच हुई और आधी नहीं। जहाँ अनूप जलोटा के सिर पर उनके पिता स्वर्गीय पुरुषोत्तम दास जलोटा का हाथ था, वहीं सत्यपाल जी की लगन ही उनकी मार्गनिर्देशक थी। पुरुषोत्तम दास जी अपने समय के प्रसिद्द शास्त्रीय संगीत गायक रहे जिन्होंने शास्त्रीय संगीत की कुछ विधाओं को भजन गायन में आज़माकर एक नया आयाम दिया। अनूप जलोटा ने संगीत की शिक्षा जारी रखते हुए लखनऊ के भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय से डिग्री पूरी की, फिर लाखो-करोड़ो कैसेट-रिकार्ड्स बिके, भजन सम्राट की उपाधि, पद्म श्री मिला, बॉलीवुड-टीवी, देश-विदेश में कंसर्ट्स….और सत्यपाल? घर की आर्थिक स्थिति के कारण वो अपनी दसवीं तक पूरी नहीं कर पाये। 1968 में कारपेंटरी का कोर्स कर दुनिया से लड़ने निकल गये, जो लड़ाई आजतक चल रही है। रोटी की लड़ाई में सत्य पाल ने कला को मरने नहीं दिया। उनकी कला उनसे 5-7 बरस ही छोटी होगी। फ्रेमिंग का काम करते हुए कलाकृतियाँ बनाते रहे और बच्चों को पेंटिंग सिखाते रहे।
“आप पेंटिंग सिखाने के कितने पैसे लेते हैं?”
“एक महीने का पांच सौ और मटेरियल बच्चे अलग से लाते हैं। जिनमें लगन है पर पैसे नहीं दे सकते उनसे कुछ नहीं लिया।”
कभी एक सतह पर खड़े दो लोग, आज एक के लिए अलग से प्राइवेट जेट तक आते हैं और एक खुले पैसे गिनने में हुई देर से टेम्पों वाले की चार बातें सुनता है। कला के सानिध्य में संतुष्ट तो दोनों है पर एक दुनियादारी नाग के फन पर सवार है और एक उसका दंश झेल रहा है। सत्यपाल जी की संतोष वाली मुस्कराहट ही संतोष देती है। क्या ख्याल आया? पागल है जो मुस्कुरा रहा है? पागल नहीं है जीवन, कला और उन बड़ी बातों के प्यार में है जिनके इस छोटी सोच वाली दुनिया में कोई मायने नहीं है। क्या सत्यपाल हार गये? नहीं! वो पिछले 49 सालों से जीत रहे हैं और जी रहे हैं। अपने शिष्यों की कला में जाने कबतक जीते रहेंगे।
ओह, बातों-बातों में इनकी चाय पी ली और समय भी खा लिया। अब दो-ढाई सौ रुपये में कौनसी ओरिजिनल पेंटिंग मिलेगी? एटीएम कार्ड लाना चाहिए था। कुछ संकोच से पेंटिंग का दाम पूछा।
“75 रुपये!”
अरे मेरे भगवान! धरती फट जा और मुझे खुद में समा ले। क्या-क्या सोच रहा था मैं? सत्यपाल जी ने तो मेरी हर सोच तक को दो शब्दों से पस्त कर दिया। क्या बोलूँ, अब तो शब्द ही नहीं बचे। आज पहली बार मोल-भाव में पैसे बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। मैंने कोशिश की पर उन्होंने एक पैसा नहीं बढ़ाया। मैंने बचे हुए पैसो की एक और थोड़ी बड़ी पेंटिंग खरीदी और वहाँ आते रहने का वायदा किया। आप सबसे निवेदन है कि डिजिटल, ट्रेडिशनल आदि किसी भी तरह और क्षेत्र के कलाकार से अगर आपका सामना हों तो अपने स्तर पर उनकी मदद करने की कोशिश करें। विवाह, जन्मदिन और बड़े अवसरों पर कलाकृति, हस्तशिल्प उपहार में देकर नया ट्रेंड शुरू करें।
नशे से नज़र ना हटवा सके…
उन ज़ख्मों पर खाली वक़्त में हँस लेता हूँ,
मुफ़लिसी पर चंद तंज कस देता हूँ…
बरसों से एक नाव पर सवार हूँ,
शोर ज़्यादा करती है दुनिया जब…
उसकी ओट में सर रख सोता हूँ।
==========
#ज़हन
Leave a Comment
November 25, 2017 at 10:19 am (Comics, experiment, Fiction, Freelance Talents, Mohit Sharma Author, Mohit Trendy Baba, Uncategorized, update)
Tags: art, Comics, life, Mohitness
New Comic: Pagli Prakriti – पगली प्रकृति (Vacuumed Sanctity), Hindi – 15 Pages. English version coming soon.
Readwhere – https://goo.gl/r3snfZ
Google Play – https://goo.gl/Drp1Bs
Issuu – https://goo.gl/e7H8Hq
Nazariya Now – http://www.nazariyanow.com/2017/11/Vacuumed-Sanctity.html
Comics Our Passion – http://www.comicsourpassion.com/2017/11/vacuumed-sanctity.html
Also available: Dailyhunt App, Google Books, Slideshare, Scribd, Ebooks360 etc.Team – Abhilash Panda, Mohit Trendster, Shahab Khan, Amit Albert
.============
#abhilash #amit #amitalbert #shahab #mohitness #mohit_trendster#abhilashpanda #shahabkhan #trendybaba #freelancetalents #freelance_talents#ज़हन #मोहितपन #Vacuumed_Sanctity #VacuumedSanctity #
नादान मानव की छोटी चालों पर भारी पड़ती प्रकृति की ज़रा सी करवट की कहानी…
Leave a Comment
November 24, 2017 at 9:54 am (life, message, Mohit Sharma Author, Uncategorized, writing)
Tags: Fiction, Mohit-Trendster, social, Story
आज रश्मि के घर उसके कॉलेज की सहेलियों का जमावड़ा था। हर 15-20 दिनों में किसी एक सहेली के घर समय बिताना इस समूह का नियम था। आज रश्मि की माँ, सुमित्रा से 15 साल बड़ी मौसी भी घर में थीं।
रश्मि – “देख कृतिका…तू ब्लैक-ब्लैक बताती रहती है मेरे बाल…धूप में पता चलता है। ये ब्राउन सा शेड नहीं आ रहा बालों में? इनका रंग नेचुरल ब्राउन है।”
कृतिका – ” नहीं जी! इतना तो धूप में सभी के बालों का रंग लगता है।”
सुमित्रा बोली – “शायद दीदी से आया हो। इनके तो बिना धूप में देखे अंग्रेज़ों जैसे भूरे बाल थे। रंग भी एकदम दूध सा! आजकल वो कौनसी हीरोइन आती है…लंदन वाली? वैसी! “
जगह-जगह गंजेपन को छुपाते मौसी के सफ़ेद बाल और चेचक के निशानों से भरा धुंधला चेहरा माँ की बतायी तस्वीर से बहुत दूर थे। रश्मि का अपनी माँ और मौसी से इतना प्यार था कि वो रुकी नहीं… “क्या मम्मी आपकी दीदी हैं तो कुछ भी?” रश्मि की हँसी में उसकी सहेलियों की दबी हँसी मिल गयी।
झेंप मिटाने को अपनी उम्रदराज़ बहन की आँखों में देख मुस्कुराती सुमित्रा जानती थी कि उसकी कही तस्वीर एकदम सही थी पर सिर्फ उसकी यादों में थी।
============
Leave a Comment
November 6, 2017 at 8:40 am (archives, Comics, Freelance Talents, Hindi, Mohitness, nazm, poem, Poet Mohit Sharma, Uncategorized, update)
Tags: art, Comics, Mohit-Trendster, Poetry
Art and Poetry: Pagli Prakriti – Vacuumed Sanctity Comic
खौफ की खाल उतारनी रह गयी,
…और नदी अपनों को बहा कर ले गयी!
बहानों के फसाने चल गये,
ज़मानों के ज़माने ढल गये…
रुक गये कुछ जड़ों के वास्ते,
बाकी शहर कमाने चल दिये।
खौफ की खाल उतारनी रह गयी,
गुड़िया फ़िर भूखे पेट सो गयी…
समझाना कहाँ था मुश्किल,
क्यों समीर को मान बैठे साहिल?
तिनकों को बिखरने दिया,
साये को बिछड़ने दिया?
खौफ की खाल उतारनी रह गयी,
रुदाली अपनी बोली कह गयी…
रौनक कहाँ खो गयी?
तानो को सह लिया,
बानो को बुन लिया।
कमरे के कोने में खुस-पुस शिकवों को गिन लिया।
खौफ की खाल उतार दो ना…
तानाशाहों के खेल बिगड़ दो ना!
शायद उतरी खाल देख दुनिया रंग बदले,
एक दुकान में गिरवी रखा हमारा सावन…
शायद उस दुकान का निज़ाम बदले!
घिसटती ज़िन्दगी में जो ख्वाहिशें आधी रह गयीं,
कुछ पल जीकर उन्हें सुधार दो ना!
खौफ की खाल उतार दो ना…
===========
Leave a Comment