नमस्ते, इस साल ई-बुक संस्करण में प्रकाशित दोनों किताबें अब पेपरबैक में उपलब्ध हैं। लगातार स्नेह बनाए रखने के लिए, आप सबका आभार! आगे के सफर को बेहतर बनाने के लिए भी आपके सहयोग वाले धक्के की आशा है। प्यार से धक्का मार के लगभग 100 कहानियों का लुत्फ़ उठाएं। ❤
“किन्नर समाज – संदर्भ – तीसरी ताली” (साहित्यिक समालोचना) – वाणी प्रकाशन की किताब में मेरी कहानी “किन्नर माँ” को शामिल कर उसपर अपनी राय देने के लिए लेखिका पार्वती कुमारी जी का आभार। हर बार की तरह बस एक शिकायत कि मेरा काम या नाम कहीं आता है, तो उस समय लेखक, प्रकाशक आदि के बजाय कई महीनों या सालों बाद कोई मित्र, प्रशंसक जानकारी देता है। खैर, कोई बात नहीं पार्वती जी का लिटरेरी क्रिटिसिज़्म में ये प्रयास मुझे अच्छा लगा। उन्हें और टीम को बधाई! #ज़हन
दो साल पहले [19 April 2018] जीवन में एक बदलाव आया। कुछ आदतें बदली और कुछ आदतें बदलवाई। थोड़ी बातें और ढेर सारी यादें बनाई। एक रचनात्मक व्यक्ति की प्राथमिकताएं अलग होती हैं…उसे दुनिया में रहना भी है और दुनियादारी में पड़ने से भी परहेज़ है। ऐसे में डर होता है कि क्या शादी के बाद भी यह सोच बनी रहेगी या नहीं? पहले मेघा और अब प्रभव ने मिलकर मुझे जीवन के कई पाठ पढ़ाए। इन्होनें बताया कि प्राथमिकताएं कोई बाइनरी कोड नहीं जिन्हें या तो रखा जाए या छोड़ा जाए…इंसान नए नज़रिये और जीने के ढंग के साथ प्राथमिकताओं में कुछ बदलाव करके भी खुश रह सकता है। मेरे मोनोक्रोमेटिक जीवन को खूबसूरत पेंटिंग बनाने के लिए शुक्रिया मेघा और प्रभव!
आप दोनों के लिए 2 रचनाएं –
कुछ मैंने समझा…कुछ तुमने माना,
नई राह पर दामन थामा।
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कुछ मैंने जोड़ा…कुछ तुमने संजोया,
मिलकर हमने ‘घर’ बनाया।
दोनों की जीत…दोनों की हार,
थोड़ी तकरार…ढेर सा प्यार।
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मेरी नींद के लिए अपनी नींद बेचना,
दफ्तर से घर आने की राह देखना।
माथे की शिकन में दबी बातें पढ़ना,
करवटों के बीच में थपथपा कर देखना।
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साथ में इतनी खुशियां लाई हो,
एक घर छोड़ कर…मेरा घर पूरा करने आई हो।
पगडंडियों से रास्ता सड़क पर मुड़ गया है…
सफर में एक नन्हा मुसाफिर और जुड़ गया है।
चाहो तो अब पूरी ज़िंदगी इन दो सालों की ही बातें दोहराती रहो…
लगता है यह सफर चलता रहे…कभी पूरा न हो!
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(हास्य) [ध्यान दें – ये दोनों ही मेन लीड हैं, क्योंकि मेरी प्रोफाइल है इसलिए खुद को नायक बना रहा हूँ।]
मैं उपन्यास हूँ…आप दोनों मेरे प्लाट ट्विस्ट और मेन लीड,
मैं छुटभैया नेता हूँ…आप दोनों मेरे जुटाए कैबिनेट मंत्री और भीड़।
मैं अन्ना हजारे हूँ…आप दोनों मेरे संघर्ष और अनशन,
मैं वीडियो गेम हूँ…आप दोनों मेरे प्लेयर और लास्ट स्टेज के ड्रैगन।
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मैं एसयूवी हूँ…आप दोनों मेरे चेसिस और इंजन,
मैं सुबह की सांस हूँ…आप दोनों मेरे माउथवाश और मंजन।
मैं ट्रैक्टर हूँ…आप दोनों मेरे कल्टीवेटर और डाला,
मैं शक्तिमान हूँ…आप दोनों मेरे किलविश और कपाला!
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मैं सब्जीवाला हूँ…आप दोनों मेरा ठेला और टोकरा,
मैं धूम सीरीज़ हूँ…आप दोनों मेरे अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा!
मैं हलवाई हूँ…आप दोनों मेरी दिवाली और मिठाई,
मैं तापसी पन्नू हूँ…आप दोनों मेरी पीआर एजेंसी और बीफिटिंग रिप्लाई!
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मैं अजय देवगन हूँ…आप दोनों मेरे रोहित शेट्टी और काजोल,
मैं बीजेपी हूँ…आप दोनों मेरे आरएसएस और बजरंग दल।
मैं इंदिरा गांधी हूँ…आप दोनों मेरे भारत रत्न और इमरजेंसी,
मैं पाकिस्तान हूँ…आप दोनों मेरे टेररिज़्म और इंसरजेंसी।
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मैं फ़ुटबॉल हूँ…आप दोनों मेरे जूता और लात, [ओ भाई…मारो मुझे मारो]
पुणे से कुछ दूर एक वीरान सी बस्ती में लगभग आधा दर्जन परिवार रहते थे। वहां दो पड़ोस के पुराने घरों में कई सालों से दो भूत रहते थे। एक का नाम था विनायक और दूसरी थी क्रिस्टीन। दोनों बड़े ही शांत किस्म के थे पर उनका थोड़ा-बहुत विचरण या कुछ हरकतें (जिनसे किसी को नुक्सान नहीं होता था) उन घरों में बाद में किराए पर रहने वाले लोगों को डरा दिया करती थी। हालांकि, थोड़े समय बाद इन घरों में रह रहे परिवारों को इनकी आदत पड़ जाती। इस तरह कुछ दशक बीते। जहां विनायक, भगवान गणेश का परम भक्त था वहीं क्रिस्टीन कट्टर कैथोलिक ईसाई।
मरने से पहले दोनों जितना एक दूसरे से बचते थे, मरने के बाद न चाहते हुए भी बातें करते-करते अच्छे दोस्त बन गए थे। ऐसा नहीं था कि मरने से पहले विनायक और क्रिस्टीन में कोई बात नहीं होती थी। दोनों के जीवनसाथी बहुत पहले दुनिया छोड़ चुके थे। बस्ती में पेड़ लगाना, बिजली की लाइन पाने के लिए धरना देना, बंजर ज़मीन पर सब बस्ती वालों की साझा खेती जैसे कामों में दोनों सबसे ज़्यादा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे… इस वजह से दोनों मन ही मन एक दूसरे की इज़्ज़त भी करते थे पर जहाँ धर्म, त्यौहार आदि की बात आती थी तो विनायक और क्रिस्टीन उत्तर और दक्षिण ध्रुव बन जाते थे। अपने धर्म के प्रति इनका विश्वास इतना दृढ़ था कि मरने के बाद भी ये एक-दूसरे को अपना धर्म अपनाने के तर्क दिया करते थे।
किस्मत से विनायक के घर में एक ईसाई परिवार किराए पर आया और थोड़े समय बाद क्रिस्टीन के घर में एक गणेश भक्त परिवार। विनायक और क्रिस्टीन बड़ी उत्सुकता से उन परिवारों की दिनचर्या देखते और फिर एक दूसरे को बताते कि कैसे आजकल के तरीके और बच्चे पहले से अलग हो गए हैं, कैसे पुराना धीमापन नई तेज़ी से बेहतर था और कैसे किराए पर आये परिवार के सदस्य बहुत अच्छे हैं। अगर कभी-कभार उन्हें कुछ गलत या दूसरे के धर्म का उल्लंघन दिखता तो वे जानबूझ कर दूसरे को नहीं बताते। न चाहते हुए भी कुछ हरकतों, हल्की खटपट और दूसरी आवाज़ों की वजह से दोनों परिवारों का शक बढ़ने लगा कि इन घरों में भूतों का साया है। हिन्दू परिवार ने अपने घर का भूत (क्रिस्टीन) भगाने के लिए हवन रखा और उसी दिन ईसाई परिवार ने अपने घर से भूत (विनायक) निकालने के लिए बड़े पादरी से एक्सोरसिस्म की योजना बनाई। दोनों परिवार साबित करना चाहते थे कि भूत भगाने के लिए उनके धर्म का तरीका दूसरे धर्म से बेहतर और कारगर है।
विनायक, स्वभाव के अच्छे ईसाई परिवार को नुक्सान नहीं पहुंचाना चाहता था। साथ ही, क्रिस्टीन आहत न हो इसलिए विनायक एक्सोरसिस्म से पहले की शाम घर छोड़कर जंगलों की तरफ उड़ गया। धर्म की छोटी बहस में इतने सालों की दोस्ती इस तरह ख़त्म कर देना उसे गवारा नहीं था। उसने सोचा कि अगर हिन्दू धर्म बेहतर होगा तो उसे खुद से कोई जतन करना ही नहीं पड़ेगा। उसके भूतिया मन में चल रहा था कि क्रिस्टीन क्या सोच रही होगी। पता नहीं वह उसका अचानक गायब होना समझ पाई होगी या नहीं।
जंगल आकर उसका सिर चकरा गया। शांति और लोगों से दूर जंगल के हर पेड़ पर भूतों ने डेरा जमा रखा था। कोई भी नए भूत-प्रेतों के लिए अपनी जगह छोड़ने को तैयार नहीं था।
“हे गणपति बप्पा! ऐसा तो नहीं सोचा था…आत्मा बनने के बाद भी घर के लिए भटकना पड़ेगा।”
कुछ देर भटकने के बाद, विनायक उस जान-पहचानी आवाज़ पर मुड़ा…
“किराए पर रहने के लिए जगह चाहिए…यह पेड़ छोटा है पर दो भूत एडजस्ट कर लेगा।”
विनायक ख़ुशी से फूल कर कुप्पा होके बोला – “क्रिस्टीन! तुम तो…”
क्रिस्टीन मुस्कुराकर बोली – “हाँ! गणपति बप्पा से पिटाई थोड़े ही खानी थी।”
उधर बस्ती में ज़ोर-शोर से बिना भूत वाले एक्सोरसिस्म और हवन चल रहे थे।
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प्रकाश अपनी सोशल मीडिया इमेज को लेकर बड़ा सजग रहता था। उसका मानना था कि जीवन में कोई भूल-चूक हो जाए तो चलता है पर इंटरनेट की आभासी दुनिया के प्रवासियों के सामने ज़रा सी भी कोताही नहीं। उसे कौनसे महान लोग या घटनाएं प्रेरणा देते हैं, कौनसी बातों और रुचियों को वह फॉलो करता है…सोशल मीडिया साइट्स पर सब नपा तुला दर्शाना। आभासी दुनिया के किसी मुद्दे पर अगर किसी दूसरे इंसान का मत उससे अलग हुआ प्रकाश झल्ला जाता था लेकिन अब सोशल मीडिया पर ‘बड़प्पन’ का नाटक भी करना है। इस कारण वह ऐसे दिखाता जैसे उसे फर्क नहीं पड़ा और वह इन बातों से ऊपर है। सामान्य बहस होने पर पहले वह कुछ ख़बरों, लेख वगैरह के लीक से हटकर और ढाई किलोमीटर लंबे लिंक लेकर आता। उसका मकसद सामने वाले इंसान को समझाने के बजाय तुरंत उसके हथियार डलवाना होता था ताकि उसका फैनबेस उसपर शंका न करे।
इस बीच प्रकाश के खास गुर्गे उसका गुणगान कर देते, टिप्पणियों पर पसंद और दिल चिपका देते, वहीं प्रकाश से अलग विचार वाले इंसान की टिप्पणियों पर मज़ाक उड़ाती बातें और इमोजी डाल देते। ऐसे में वह मुद्दा पढ़ने वाले लगभग सभी अपने-आप प्रकाश को सही और दूसरे व्यक्ति को बचकाना मान लेते। ऐसी सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लेकर वह न जाने कितने लोगों को ब्रेनवाश करता।
फिर भी बात न बनती तो अंत में वह बह्रमास्त्र छोड़ता – “तुम इस फील्ड की बात कर रहे हो…क्या इस क्षेत्र से जुड़ी तुमने फलाना-फलाना कुछ किताबें पढ़ी भी हैं जो तुम ‘मुझसे’ (जिसको इतना ज्ञान है) से बहस करने की हिम्मत कर रहे हो?”
मुख्य विषयों और बातों की सबसे चर्चित कुछ दर्जन किताबें वह वाकई घोट कर पी चुका था। इनके अलावा दूसरी कई किताबों का सार पढ़ने में प्रकाश की गहरी रुचि थी। ज़ाहिर है सीखने के लिए कम और धौंस जमाने या आगे किसी बहस-‘शो ऑफ’ में स्टाइल झाड़ने के लिए ज़्यादा। सतही मेहनत के महल को पक्का बनाए रखने के लिए वह एक काम और करता। प्रकाश किसी से बहस या उसका मज़ाक उड़ाने से पहले जांच लेता था कि कहीं सामने वाला इस क्षेत्र का बड़ा ज्ञानी तो नहीं। अगर हाँ तो घुमा-फिरा कर और ध्यान बंटाकर विषय बदल देता या उस व्यक्ति को दूसरे क्षेत्र की बहस में लाने की कोशिश करता।
एक दिन प्रकाश की बहस इंजीनियरिंग कर रहे लड़के प्रवीण से हुई। बहस एक राज्य की राजनीती पर थी। प्रकाश को अपने जीतों की सूची में एक आसान जीत और दिख रही थी। लड़के ने प्रकाश की बात से अलग पक्ष रख उसकी शान में गुस्ताख़ी कर दी थी…सज़ा तो बनती थी। बात बढ़ती गई और प्रकाश ने अपने सारे पैंतरे आज़माए। कई लोग प्रकाश की तरफदारी करने आए और प्रवीण के कुछ साथी छात्रों ने उसका समर्थन किया। अंत में प्रकाश ने उस राज्य की राजनीती पर 5-7 मशहूर किताबों और कुछ शोध कार्यों का ज़िक्र किया। जवाब में प्रवीण ने अपनी पढ़ी, सुनी-देखी हुई सामग्री की बात कही….लेकिन असंगठित लेख आदि चाहे जितनी संख्या में हों…कहाँ मशहूर पुस्तकों के आगे टिक पाते। (ऐसा प्रकाश और आभासी दुनिया के कई लोगों का मानना था) अति आत्मविश्वास में प्रकाश ने यह भी स्वीकार लिया कि उस राज्य पर उसने इतना ही पढ़ा है और यह उन ‘बच्चों’ के सामने आई सामग्री से कहीं ज़्यादा महत्व रखता है।
“अच्छी बात है, सर। हाल ही में मद्रास यूनिवर्सिटी और कोंकण यूनिवर्सिटी के साझा प्रयास से सबके इस्तेमाल के लिए मुफ़्त ‘बहसनेटर’ नामक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है। इसमें दो या ज़्यादा पक्षों के तर्क के पीछे जानकारी के सभी स्रोतों की निष्पक्षता और जानकारी के स्तर की तुलना की जाती है।”
प्रकाश ने ऐसी उम्मीद नहीं की थी। उसने जवाब दिया – “ऐसा नहीं हो सकता…किसी भी क्षेत्र में ज्ञान और जानकारी की कोई सीमा नहीं होती। तो फिर कौन ज़्यादा और कौन कम?”
प्रवीण को ऐसे सवाल की ही उम्मीद थी – “सहमत हूँ, वैसे तो किसी भी क्षेत्र में जानकारी की कोई सीमा नहीं पर किसी विषय पर दो पक्षों को तुलनात्मक रूप से कितनी जानकारी पता है और उसमें से कितनी सही, गलत या विवाद करने लायक है का एक अंदाज़ा लगता है, नतीजे में 5-10 प्रतिशत का अंतर हो सकता है पर ज़्यादा नहीं।”
प्रकाश का धैर्य टूट रहा था – “हाँ, तो यह सब मुझे क्यों बता रहे हो?”
प्रवीण – “आपकी बताई किताबों, शोध आदि को एक पक्ष में रखा और हमारे बताए गए लेख, वीडियो आदि सामग्री दूसरे पक्ष में…सॉफ्टवेयर से मिला रिजल्ट यह है कि इस विषय पर आपके पक्ष की तुलना में हमारे पक्ष के पास 79.2% ज़्यादा जानकारी है। हाँ, संभव है कि इस सॉफ्टवेयर में कमियां हों पर यहाँ 20-30 नहीं बल्कि लगभग 80% का अंतर दिख रहा है। आपको बाकी विषयों की जानकारी होगी पर यहाँ तो कम से कम चुप ही रहें।
एक आखिरी बात और क्योंकि मैंने आपका ऑनलाइन ढोंग काफी समय से देखा है। मुझे पता है इसके बाद आप मेरा और मेरे दोस्तों का मज़ाक उड़ाएंगे, इस सॉफ्टवेयर को हवाई बताएंगे और अपने खलिहर फॉलोअर्स से हमें बुली करवाएंगे। आप यहाँ ही नहीं रुकेंगे कुछ दिन बाद आप इस विषय पर अपनी बात को सही साबित करते हुए लंबी पोस्ट लिखेंगे और उसके फॉलो-अप में बातें लिखते रहेंगे क्योंकि आप तो कभी गलत नहीं हो सकते। आप तो फ़रिश्ते पैदा हुए हो जो आज तक किसी भी विषय में कमतर या गलत साबित नहीं हुआ। किताबें पढ़ना अच्छी बात है पर उसके बाद आप जो ओछी हरकतें करते हैं वह सब गुड़ गोबर कर देती हैं। मेरी बस एक सलाह है, खुद को सही मानें पर फालतू की आत्ममुग्धता से बचें। सामने वाला इंसान कुछ कह रहा है तो पहले उसकी बात को समझें। कोई विपरीत पक्ष आने पर आप उस इंसान की बात को ऐसे नकारते हैं जैसे वह परसों पैदा हुआ हो। जिन वेबसाइट जैसे रेडिट, क्वोरा आदि का हमनें हवाला दिया है वहां अनगिनत मुद्दों पर तो करोड़ो शब्दों की सामग्री पड़ी है जिसमें से सब नहीं तो लाखों शब्द काम के हैं और दर्जनों किताबों के बराबर हैं। किसी ने अगर असंगठित जगहों से थोड़ी-थोड़ी जानकारी ली है तो इसका यह मतलब नहीं कि उसे ‘कुछ’ पता ही नहीं। हो सकता है उसके थोड़े-थोड़े दशमलव जुड़कर आपके एक जगह के चौके-छक्के से कहीं ज़्यादा हो जाएं। मैं देखना चाहूंगा कि बहसनेटर पर आप और सोशल मीडिया पर ज्ञान की दुकान खोले बैठे कई लोग बाकी विषयों में कितने पानी में हैं। आपकी प्रोफाइल मैंने हैक कर ली है…घबराएं नहीं कोई गलत इस्तेमाल नहीं करूंगा पर पिछले कुछ महीनों के आपके स्टंट बहसनेटर पर तोलकर आपकी सभी सोशल मीडिया प्रोफाइलों पर आपके नाम से ही डाल रहा हूँ। आगे दोबारा नौटंकी की कोशिश की तो फिर से प्रोफाइल हैक करके ऐसा करूंगा। पुलिस को ज़रूर बताएं…मुझे आपके इनबॉक्स में मिली सामग्री की कसम आपसे कम ही सज़ा होगी। इस बहस से जुड़े और बाकी ‘काम के’ सारे स्क्रीनशॉट ले लिए हैं। धन्यवाद!”
प्रकाश का उसी के खेल में शिकार हो चुका था। उसका आभासी स्टारडम और दिमाग अपनी जगह पर आ गए।
Fun times with Lionbridge colleagues! Great commitment by everyone.
2 friendly cricket matches – Lionbridge Annual Day 2019
Black Panthers vs. White Tigers (my team)
First Match (12 Overs), Second Match (6 Overs)
Match 1 – BP (139/1) beat WT – (138/7) by 9 wickets.
Match 2 – WT (49/2) beat BP (47/4) by 8 wickets
Result 1-1
Lost first match and won the second. Performed well with the bat. Scored highest runs (33*) in second 6-over match.