#story बहस-नेटर: हर बहस का अंत
December 3, 2019 at 11:00 am (Character, experiment, Fiction, Hindi, Mohit Sharma Trendster, Mohitness, Uncategorized, update, writing)
Tags: internet, life, Mohit-Trendster, moral, social, Stories
प्रकाश अपनी सोशल मीडिया इमेज को लेकर बड़ा सजग रहता था। उसका मानना था कि जीवन में कोई भूल-चूक हो जाए तो चलता है पर इंटरनेट की आभासी दुनिया के प्रवासियों के सामने ज़रा सी भी कोताही नहीं। उसे कौनसे महान लोग या घटनाएं प्रेरणा देते हैं, कौनसी बातों और रुचियों को वह फॉलो करता है…सोशल मीडिया साइट्स पर सब नपा तुला दर्शाना। आभासी दुनिया के किसी मुद्दे पर अगर किसी दूसरे इंसान का मत उससे अलग हुआ प्रकाश झल्ला जाता था लेकिन अब सोशल मीडिया पर ‘बड़प्पन’ का नाटक भी करना है। इस कारण वह ऐसे दिखाता जैसे उसे फर्क नहीं पड़ा और वह इन बातों से ऊपर है। सामान्य बहस होने पर पहले वह कुछ ख़बरों, लेख वगैरह के लीक से हटकर और ढाई किलोमीटर लंबे लिंक लेकर आता। उसका मकसद सामने वाले इंसान को समझाने के बजाय तुरंत उसके हथियार डलवाना होता था ताकि उसका फैनबेस उसपर शंका न करे।
कुछ मीटर पर…ज़िंदगी! #kahani #zahan
November 28, 2019 at 9:22 am (Concept, Fiction, Hindi, Mohitness, Uncategorized)
Tags: life, Mohit-Trendster, romantic, social, Stories
आस-पास के माहौल का इंसान पर काफ़ी असर पड़ता है। उस माहौल का एक बड़ा हिस्सा दूसरे इंसान ही होते हैं। एक कहावत है कि आप उन पांच लोगों का मिश्रण बन जाते हैं जिनके साथ आप सबसे ज़्यादा समय बिताते हैं। जहाँ कई लोग दूसरों को सकारात्मक जीवन जीने की सीख दे जाते हैं वहीं कुछ जीवन के लिए अपना गुस्सा, नाराज़गी और अवसाद अपने आस-पास छिड़कते चलते हैं।
35 साल का कुंदन, रांची की एक बड़ी कार डीलरशिप में सेल्समैन था। अक्सर खुद में कुढ़ा सा रहने वाला जैसे ज़िंदगी से ज़िंदगी की चुगली करने में लगा हो। उसकी शिकायतों का पिटारा कभी ख़त्म ही नहीं होता था। इस वजह से उसके ज़्यादा दोस्त नहीं थे। गांव से दूर शहर में अकेले रहते हुए वह घोर अवसाद में पहुंच गया था। उसे लगता था कि दुनिया में कोई उसे समझता नहीं था। वैसे उसका यह सोचना गलत नहीं था…आखिर कम ही लोग लगातार एक जैसी नकारात्मकता झेल सकते हैं।
इस बीच उसके पड़ोस में निजी स्कूल की शिक्षिका तृप्ति आई। वह कुंदन की तरह ही औरों से कुछ अलग थी। धीरे-धीरे दोनों में बातें शुरू हुईं और दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। नहीं…नहीं यह प्यार वाला “पसंद” करना नहीं था। दोनों इस हद तक नकारात्मक होकर अवसाद में डूब चुके थे कि उनकी शिकायती बातें कोई और समझ रहा है और पसंद कर रहा है…बस यह बात ही दोनों को कुछ तस्सली देती थी। कहते हैं किसी का साथ इंसान को अवसाद की गर्त से निकालने के लिए काफी होता है पर ये दोनों तो साथ ही दलदल में डूब रहे थे। यह भी किस्मत की बात थी कि इस सयानी दुनिया की आदत पड़ने के बाद भी दोनों ने अपने मन के उन दबे राज़ों को खोला, जिनको लोग पागलपन का नाम देकर बात तक करना नहीं चाहते। कुछ हफ्ते बीतने के बाद कुंदन और तृप्ति को अपने बीच कुछ प्यार जैसा महसूस तो हुआ पर उसके ऊपर टूटे व्यक्तित्वों की इतनी परतें थी जिनके पार देख पाना असंभव था।
धीरे-धीरे बातों के विषय शिकायत, परेशानी से अलग होकर स्थायी हल पर आने लगे। दोनों आत्महत्या पर बातें करने लगे। यही तो इनके मन में था। हर झंझट से चुटकी में छुटकारा पाना। दोनों का प्यार बढ़ रहा था लेकिन दोनों को ही खुद पर भरोसा नहीं था…कहीं उनका बावरा मन इस नॉवल्टी से बोर होकर पुरानी रट न लगाने लगे। एक दिन दोनों आत्महत्या के तरीकों पर गहरा विमर्श करने लगे। तृप्ति ने कुंदन से अनुरोध किया कि प्यार में घुली इस दोस्ती के नाते दोनों को साथ मरना चाहिए।
कुंदन तृप्ति के बालों में हाथ फिराता हुआ बोला। – “मैं भी ऐसा ही चाहता हूँ! लेकिन मैं साधारण मौत नहीं चाहता।”
तृप्ति ने दिलचस्पी भरी नज़रों से कहा – “मतलब? यह असाधारण मौत कैसी होती है भला?”
कुंदन – “मतलब, ज़िंदगी ढंग की न सही मौत तो ज़बरदस्त होनी चाहिए। ऐसे जैसे लोग मरते न हों…क्या कहती हो?”
तृप्ति – “वाह! ठीक है, चलो कुछ ‘ज़बरदस्त’ सोचते हैं। हा हा!”
मरने की बातें जो लोग गलती से करने पर भी भगवान से माफ़ी मांगते हैं। इधर कुंदन और तृप्ति कितनी आसानी से कर रहे थे।
घंटों बातें करने के बाद दोनों के अपनी मौत का अलग तरीका चुना। अगले दिन कुंदन डीलरशिप से बहाना बनाकर एक कार निकाल लाया। उसने अपनी गारंटी पर तृप्ति को कुछ देर टेस्ट ड्राइव के लिए दूसरी कार दी। योजना यह थी कि सुनसान तालाब के बगल वाली सड़क के एक छोर से तेज़ रफ़्तार कार में कुंदन आएगा और कुछ दूर से तृप्ति। दोनों इस गति से एक-दूसरे से टकराएंगे कि मौके पर मौत पक्की। अगर कोई घायल होकर कुछ देर के लिए बच भी जाए तो इस वीरान इलाके में किसी के आने तक उसका भी मरना तय था। दोनों फ़ोन पर जुड़े और साथ में अपनी-अपनी कार चालू कर तेज़ी से एक-दूसरे की तरफ बढ़े। डीलरशिप से निकली चमचमाती कारें अपनी किस्मत और कुंदन-तृप्ति को कोस रहो होंगी।
“आई लव यू!”
“आई लव यू टू!”
क्या इस इज़हार में देर हो गई थी? क्या यही अंत था?
जब कारें दो-ढाई सौ मीटर की दूरी पर थी तो कुंदन और तृप्ति को बीच सड़क पर एक नवजात बच्ची पड़ी हुई दिखी। शायद इनकी तरह कोई और भी इस वीराने का फ़ायदा उठा रहा था…इस बच्ची को खुद मारने के बजाय प्रकृति से हत्या। कायर!
इतनी रफ़्तार में फ़ोन पर कुछ बोलने का समय नहीं बचा था दोनों ने आँखों में बात की और टक्कर होने से कुछ मीटर पहले गाड़ियां मोड़ दी। जीवन का इतना समय केवल आत्महत्या और इस पल के बारे में सोचने वाले इतने करीब से कैसे चूक गए? शायद उस बच्ची में दोनों को जीने की वजह मिल गई थी। बच्ची को देखने के बाद के दो सेकंड और आँखों से हुई बात ने कुंदन और तृप्ति की जीवन भर की उलझन सुलझा दी थी। तृप्ति की कार तालाब में जा गिरी वहीं कुंदन पेड़ से टकराने से बाल-बाल बचा। घुमते दिमाग के साथ कुंदन ने उतरकर उस बच्ची को कार में रखा और तालाब में छलांग लगा दी। कुंदन किसी तरह तृप्ति के पास पहुंचा जो जीने के लिए डूबती कार की खिड़की को ज़ोर-ज़ोर से मार रही थी। कितना अजीब है न कि कुछ सेकंड पहले वह मरने को तड़प रही थी और अब जीने के लिए पागल हुई जा रही थी। इस बात को भांपकर दोनों इस स्थिति में भी मुस्कुराने लगे। कार का शीशा टूटा और कुंदन तृप्ति को तालाब से सुरक्षित निकाल लाया। मौत की आँखों में झांककर और जीवन की डोर पकड़कर दोनों खुशी से काँप रहे थे। बच्ची भी हल्की नींद में मुस्कुरा रही थी जैसे अपने नए माँ-बाप की बेवकूफियों पर हँस रही हो।
तृप्ति और कुंदन वापस उस जीवन, उन संघर्षों में एक नई उम्मीद के साथ वापस लौटे और अपने सकारात्मक नज़रिए से जीवन को बेहतर बनाने लगे। अब जब भी वे परेशान होते तो अपनी बेटी का चेहरा देखकर सब भूल जाते। ऐसा नहीं था कि उन्हें किसी जादू से ज़िंदगी में खुशियों की चाभी मिल गई थी, बस अब वे ज़िंदगी से बचते नहीं थे बल्कि उससे लड़ते थे।
उस दिन कुंदन और तृप्ति ने उस बच्ची को नहीं बचाया था…उस बच्ची ने बस वहाँ मौजूद होकर उन दोनों की जान बचाई थी।
समाप्त!
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#ज़हन
Certificate and Magazines
October 17, 2019 at 9:36 pm (magazine, Mohitness, Uncategorized, writing)
Tags: contest, Published, Stories
Sudarshnika Magazines with my stories -poetry and certificate. 🙂 #magazine #Hindi #feeling_good
झूठी शान (Hindi Moral Story for Kids) #zahan
August 12, 2019 at 9:59 pm (Mohit Sharma Author, story, Uncategorized)
Tags: Fiction, kids, Mohit-Trendster, moral, Published, Stories
बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानी – झूठी शान
पीडीएफ के अलावा ड्राफ्ट मिल नहीं रहा। वहाँ से कहानी यहाँ लाने पर corrupt characters/font दिख रहे हैं. इस वजह से स्क्रीनशॉट साझा कर रहा हूँ। कहानी गौरी अर्द्धवार्षिक पत्रिका में प्रकाशित।
Abhiman se Apman (Story for Kids) in Anubhav Magazine July 2019
July 16, 2019 at 6:56 pm (Fiction, magazine, Mohitness, Uncategorized)
Tags: Mohit-Trendster, moral, Stories
बूढ़े बरगद के पार (Hindi Story)
June 20, 2019 at 3:03 pm (Fiction, life, Mohit Sharma Trendster, story, Uncategorized)
Tags: Mohitness, Stories, struggle, updates
संतुष्टि की कोई तय परिभाषा नहीं होती। बच्चा कुदरत में रोज़ दोहराये जाने वाली बात को अपने जीवन में पहली बार देख कर संतुष्ट हो सकता है, वहीं अवसाद से जूझ रहे प्रौढ़ को दुनिया की सबसे कीमती चीज़ भी बेमानी लगती है। नवीन के चाय बागान अच्छा मुनाफा दे रहे थे। इसके अलावा अच्छे भाग्य और सही समझ के साथ निवेश किये गए पैसों से वह देश के नामी अमीरों में था। एक ही पीढ़ी में इतनी बड़ी छलांग कम ही लोग लगा पाते हैं। हालांकि, नवीन संतुष्ट नहीं था। मन में एक कसक थी…उसके पिता हरिकमल।
जब नवीन संघर्ष कर रहा था तब उसके पिता हर कदम पर उसके साथ थे। वे अपने जीवन के अनुभव उससे बांटते, निराश होने पर उसे हौंसला देते और यहाँ तक कि उसके लिए कितनी भागदौड़ करते थे। ऐसा भी नहीं था कि ये कुछ सालों की बात थी। अब नवीन की उम्र 53 साल थी और उसके पिता करीब 82 साल के थे। आज जब जीवन स्थिर हुआ तो अलजाइमर के प्रभाव में वे पुराने हरिकमल जी कहीं गुम हो गए। नवीन के लिए बात केवल खोई याददाश्त की नहीं थी, मलाल था कि ऊपरवाला कुछ कम भी देता पर ऐसा समय देखने के लिए पिता को कुछ ठीक रखता।
“बरगद…”
हरिकमल अक्सर ये शब्द बुदबुदाते रहते थे। कसक का इलाज ढूंढ रहे नवीन ने इस शब्द पर ध्यान तो दिया पर कभी इसपर काम नहीं किया। एक दिन दिमाग को टटोलते हुए नवीन ने इस बरगद की जड़ तक जाने की ठान ली। कुछ पुराने परिजनों से और कुछ अपनी धुंधली यादों से तस्वीर बनाई। गांव में घर के पास बड़ा सा बरगद का पेड़। खेती-बाड़ी करने के बाद पिताजी उसकी छांव में बैठा करते थे। इसके अलावा हरिकमल कुछ और भी कहते रहते थे पर वह बात पूरा ध्यान देने पर भी समझ नहीं आती थी। ऐसा लगता था जैसे बरगद के बाद बोली बात उनके मन में तो है पर होंठो तक आते-आते बिखर जाती थी। क्या पता वह दूसरी बात अलजाइमर के प्रभाव में उन्हें याद न हो….या वे खुद बोलना न चाहते हों। अब अधूरी तस्वीर में एक पुराना बरगद था और बाकी यादों के कोहरे में छिपी कोई बात। चलो पूरी न सही एक सिरा ही सही।
नवीन ने विशेषज्ञों का एक दल पिताजी के आधे-अधूरे वर्णनों को पकड़ने में लगा दिया।
“बरगद…”
यह शब्द और इसके अलावा जो कुछ भी हरिकमल कहते उसपर गहन चर्चाएं होती, कलाकारों से स्केच बनवाये जाते और कंप्यूटर की मदद से उन्हें असलियत के करीब लाया जाता। परिजनों और नवीन की यादों पर शोध कार्य हुए। अंत में नवीन के एक फार्म हाउस का बड़ा हिस्सा साफ़ करके उसमें गांव जैसा पुराना घर और दूसरे शहर से जड़ों के नीचे कई मीटर मिट्टी समेत विशाल, पुराने बरगद को लगाया गया। कच्चे मकान और बरगद की कटाई छटाई इस बारीकी से की गई थी कि वो सबकी यादों के आइनों के सामने खरे उतर सकें।
“बरगद…”
लो बरगद तो आ गया। नवीन, सारे परिजन और उसका अनोखा दल ‘बरगद’ पर हरिकमल जी की प्रतिक्रिया जानने को बेचैन था। हालांकि, डॉक्टरों ने किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद रखने की सलाह नहीं दी थी। फिर भी ये अनोखा प्रयोग और इससे जुड़ी मेहनत, भावनाएं जैसे डॉक्टरों की सलाह को अनदेखा करने की अपनी ही सलाह दे रही थीं।
हरिकमल को फार्म हाउस लाया गया। इस बात का पूरा खयाल रखा गया कि उन्हें अचानक बड़ा झटका न लगे। बरगद को ढ़ककर रखा गया। धीरे-धीरे उन्हें पुराने घर से जुड़ी चीज़ें दिखाई गईं, वैसे तापमान और खेतों में कुछ दिनों तक रोज़ थोड़ी देर के लिए रखा गया। जब उनकी प्रतिक्रिया और सेहत सही बनी रही तो आख़िरकार पुराने बरगद से उनके मिलने की तारीख तय हुई।
“बरगद…”
वह दिन भी आया। हरिकमल से मिलने उनका ‘बरगद’ आया था। वे बरगद से किसी पुराने यार की तरह लिपट गए। बरगद से ही उनका लंबा एकालाप में लिपटा वार्तालाप चला। उनकी ख़ुशी और संतुष्टि देख कर सभी अपनी मेहनत सफल मान रहे थे। इतने में हरिकमल ज़मीन पर निढाल होकर रोने लगे। सब कुछ ठीक तो हो गया था? अब क्या रह गया?
सब सवालों से घिरे थे पर नवीन को जैसे जवाब पता था या शायद वह इस घटना का इंतज़ार कर रहा था। अपने दल और नौकरों को हरिकमल से दूर हटाकर नवीन उनसे लिपट गया।
“देख…बाबू…”
“बोलो पिता जी, क्या रह गया? क्यों परेशान हो…इतने सालों से। क्यों मुँह में मर जाती है बरगद के बाद दूसरी बात?”
दहाड़े मारते हरिकमल बोले – “बरगद तो आ गया…”
“बरगद तो आ गया…पर पुराना माहौल नहीं आया।”
समाप्त!
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Prayas (Hindi Story)
March 2, 2019 at 7:20 pm (Mohit Sharma Trendster, story, Uncategorized, writing)
Tags: inspiration, Mohit-Trendster, Stories
Story ‘Prayas’ in Anubhav Patrika
#Archives Freelance Talents Championship Winners (2013 to 2018)
December 31, 2018 at 5:08 am (archives, art, Awards, Freelance Talents, Freelance Talents Championship, story, Uncategorized, update, writing)
Tags: freelance talents, freelance talents championship, stats, Stories
#Archives Freelance Talents Championship Winners (2013 to 2018)
2013-14: Kapil Chandak
2014-15: Amit Rawat (League 1), Jim Lescher (League 2)
2015-16: Karan Virk and Behnam Balali (Author-Artist Team Championship)
2016-17: Ankit Nigam (Vacant FTC Title awarded to Indian Comics Fandom Awards 2017 – Best Writer)
2017-18: Himanshu Mishra
Total FTC Seasons – 5
Total Winners – 7
गृहणी को इज़्ज़त की भीख (कहानी) #zahan
August 9, 2018 at 6:20 am (Concept, Fiction, Hindi, Mohitness, Uncategorized)
Tags: life, Message, Mohit-Trendster, Society, Stories
सरकारी बैंक में प्रबंधक कार्तिक आज कई हफ़्तों बाद अपने अंतरिक्ष विज्ञानी दोस्त सतबीर के घर आया हुआ था। सतबीर के घर रात के खाने के बाद बाहर फिल्म देखने का कार्यक्रम था। खाना तैयार होने में कुछ समय था तो दोनों गृहणियाँ पतियों को बैठक में छोड़ अपनी बातों में लग गयीं। इधर कुछ बातों बाद कार्तिक ने मनोरंजन बढ़ाने के लिए कहा –
“कितनी बचकानी, बेवकूफ़ी भरी बातें करती रहती हैं ये लेडीज़ लोग।”
अपनी बात पर मनचाही सहमति नहीं मिलने और लंबी होती ख़ामोशी तोड़ने के लिए कार्तिक बोला –
“…मेरा मतलब यहाँ हम दोनों अगर अंगोला के गृह युद्ध की बात कर रहे होंगे तो वहाँ दोनों चचिया ससुर की उनके पड़ोसी से लड़ाई पर बतिया रही होंगी, यहाँ हिमाचल में हुयी उल्का-वृष्टि पर बात होगी तो वहाँ बुआ जी के सिर में पड़े गुमड़े की, इधर भारत की विदेश नीति तो उधर चुन्नी और समीज का कलर कॉम्बिनेशन मिलाया जा रहा होगा। मतलब हद है!”
सतबीर ने कुछ सोच कर कहा – “हाँ, हद तो है…”
कार्तिक ने सहमति पाकर कुछ राहत की सांस ही थी कि…“
सतबीर – “हद है हमारे नज़रिये की! ग़लती से ही सही ठीक किया था सरकार ने जब जनगणना में गृहणियों का कॉलम भिखारियों के पास लगा दिया था। बेचारी अपना सब कुछ दे देती हैं और बदले में इज़्ज़त की चिल्लर तक नहीं मिलती। बराबर के मौके और परवरिश की बात छोड़ देता हूँ….यह बता ये लोग जैसी हैं वैसी ना होतीं तो क्या आज हम लोग ऐसे होते?”
कार्तिक – “भाई, मैं समझा नहीं?”
सतबीर – “मतलब ये लेडीज़ लोग भी विदेश नीति, आर्थिक मंदी, अंतरिक्ष विज्ञान फलाना में हम जैसी रूचि लेती तो क्या हम दोनों के घर उतने आराम से चल पाते जैसे अब चलते हैं? घर की कितनी टेंशन तो ये लोग हम तक आने ही नहीं देती और उसी वजह से हम अपने पेशों में इतना लग कर काम कर पाते हैं और बाहर की सोच पाते हैं। जहाँ हम प्रमोशन, वेतन, अवार्ड आदि में उपलब्धि ढूँढ़ते हैं….ये तो बस पति और परिवार में ही अपने सपने घोल देती हैं। अगर ये लोग अपने सपने हमसे अलग कर लें तो बहुत संभव है कि ये तो बेहतर मकाम पा लें पर हमारी ऐसी तैसी हो जाये। इस तरह आराम से बैठ कर दुनियादारी की बात करना मुश्किल हो जायेगा, ईगो की लंका लगेगी सो अलग! हा हा…ये तो हम जैसे करोड़ों का लाइफ सपोर्ट सिस्टम हैं जिनके बिना हमारा जीवन कोमा में चला जाये। तो गृहणियाँ ऐसी ही सम्पूर्ण और बहुत अच्छी हैं! इनसे बैटमैन बनने की उम्मीद मत लगा वो तू खुद भी नहीं हो सकता। इन्हें भीख सी इज़्ज़त मिले तो लानत है हमपर!”
कार्तिक – “हाँ, हाँ…सतबीर के बच्चे सांस ले ले, मैं समझ गया। आज तो गूगली फेंक दी मेरे भाई ने….”
सतबीर – “रुक अभी ख़त्म नहीं हुआ लेक्चर! एक बात और बता ज़रा…इतनी दुनिया भर की बातें करता है मुझसे, यहाँ तक की ब्रह्माण्ड तक नहीं छोड़ता। अपने प्रोफेशन के बाहर कितनी तोपें उखाड़ी हैं तूने? शर्ट प्रेस करनी आती नहीं है और अंगोला के गृहयुद्ध रुकवा लो इस से…”
हँसते हुए कार्तिक को आज अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लेक्चर मिला था।
समाप्त!
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Rikshaw waali Chachi (Hindi Story) #zahan
June 25, 2018 at 10:22 am (Concept, Culture, Fiction, Hindi, story, Uncategorized)
Tags: experimental, life, Mohit-Trendster, Mohitness, observation, Stories
