लेख: सेलेब्रिटी पी.आर. का घपला (मोहित शर्मा ज़हन)

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पैसा और सफलता अक्सर अपने साथ कुछ बुरी आदते लाते हैं। कुछ लोग इनसे पार पाकर अपने क्षेत्र में और समाज में ज़बरदस्त योगदान देते हैं वहीं कई शुरुआती सफलता के बाद भटक जाते हैं। एक बड़े स्तर पर आने के बाद प्रतिष्ठित व्यक्ति पर इमेज, ब्रांड मैनेजमेंट की ज़िम्मेदारी आ जाती है लोगो पर, अब या तो आप मेहनत और साफ़-सुथरे तरीके से ये काम करे या फिर अपनी मन-मर्ज़ी का जीवन जीते हुए बाद मे अपने कृत्यों को सही ठहराने की कोशिश करें। इन्ही में कुछ विख्यात लोग लोकप्रियता बढ़ाने के लिए अपने पीआर एजेंट या नेटवर्क का सहारा लेते हैं। जैसे अगर कोई सेलिब्रिटी कोई गलत बात, काम करता पकड़ा जाए या उसकी वजह से जनता, समाज को कोई नुक्सान हो तो अपनी टीम की मदद से वो ये बातें प्रचारित करने की कोशिश करेगा कि उसका ये मतलब नहीं था वो तो इस काम से समाज की मानसिकता दिखाना चाहता/चाहती थी या उसे सेलिब्रिटी होने की सज़ा मिल रही है। ये सही है….सेलिब्रिटी होने के मज़े तक सब ठीक पर उस लाइफ में एडजस्ट करने वाले हिस्सो में शिकायत करो।

उदाहरण के लिए किसी सेलिब्रिटी ने एक मुद्दे पर बिना जानकारी के कोई बेवकूफी भरी बात कही अब उसका सोशल मीडिया आदि जगह मज़ाक उड़ा। तो उसकी बेवकूफी गयी एक तरफ और उसने निकाल लिया अपने अल्पसंख्यक, महिला या किसी अन्य मजबूरी का कार्ड, फिर क्या मीडिया, जनता का ध्यान कहीं और गया। यानी अगर उस बात की तारीफ़ होती तब कोई दिक्कत नहीं थी, जहाँ एक वर्ग ने मज़ाक उडा दिया तो घुमा-फिरा कर बात अपने ऊपर मत आने दो।

साथ ही ये लोग समय, स्थिति के अनुसार नए-नए स्टंट सोचते हैं। जैसे अपने बीते जीवन में किसी दुखद काल्पनिक घटना को जोड़ देना या किसी बीमारी (खासकर मानसिक) से जूझकर उस से जीतना दिखाना। क्या यार….आपके एक जीवन में घटनाओ का घनत्व कुछ अधिक नहीं हो गया? मैं यह नहीं कह रहा कि सब बड़े लोग ऐसा दिखावा करते है पर ऐसा करने वाले लोगो का अनुपात बहुत ज़्यादा है। आम जन – ख़ास लोग सबका जीवन चुनौतियों, संघर्षो वाला होता है पर ज़बरदस्ती के पीआर स्टंट कर के कम से कम खुद से झूठ मत बोलिये। इस नौटंकी के बिना भी आप लोकप्रिय और महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर जनता का ध्यान ला सकते हैं (बशर्ते आप वैसा करना चाहें ना की केवल अपनी पब्लिसिटी के चक्कर में पड़े रहे)। हालांकि, पैसे के पीछे भागते मीडिया को नैतिक-अनैतिक से कोई मतलब नहीं होता। हर दिन कुछ नया वायरल करने की होड़ में मीडिया के लिए कुछ नैतिकता की सोचना पाप है। वैसे व्यक्ति के बारे में थोड़ी रिसर्च और पहले का रिकॉर्ड देख कर आप जान सकते हैं कि कौन सही दावा कर रहा है और कौन पीआर के रथ पर सवार है।

जो पाठक सोच रहे है कि क्या फर्क पड़ता है? बेकार में मुद्दा बनाया जा रहा है! अगर ऐसा करने से किसी को नुक्सान नहीं पहुँच रहा तो क्या गलत है? उन मित्रो से मेरा यह कहना है कि कभी-कभी किसी वर्ग को लंबे समय से छद्म रूप से हो रहा नुक्सान सीधे नुक्सान से बड़ा होता है। जिन लोगो को वाकई मीडिया, जनता के ध्यान-पैसे की आवश्यकता है वो बेचारे तरसते रह जाते हैं और उनका हिस्सा, उनकी फुटेज गलत संस्थाएं, लोग खा लेते हैं। मुश्किल है पर सबसे निवेदन है कि अपरंपरागत न्यूज़ सोर्सेज पर ध्यान दें, सही लोगो-संस्थाओ को आगे बढ़ने मे हर संभव मदद करें। छोटे बदलाव से धीरे-धीरे ही सही पर बड़ा असर पड़ेगा।

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Posted by Mohit Sharma at 1:40 AM

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